अंतराल

जब भी कोई शब्द मिला
साथ मिले उसके लाखों ही प्रश्न चिन्ह
युग युग की कविता और छंद अनेक
एक प्रश्नचिन्ह मे ढल जायेगे
संस्कृति के उच्च शिखरों पर
गौतम की सत्य अहिंसा
तप त्याग वर्धमान का
क्यों महलों से निकले ?
जंगल जंगल भटके क्यों ?
धर्मों के आदर्श कठोर
और उनके सुकुमार बदन
एटमकी गर्मी से अन्तराल तक जल जायेगे
इन्द्र धनुषी पींगों के रंग
श्याम वर्ण से घुल जायेंगे
एक प्रश्न चिन्ह मे ढल जायेंगे
महा प्रलय का चित्रण
कैसे कोई चित्रकार करेगा ?
अंधियारे युग का वर्णनं इतिहासकार करेगा कैसे ?
ऐसे कोई परिकल्पना
हिमाच्छादित गिरिश्रिन्ख्ला
मनु कहीं पर बैठा होगा
और भटक रही होंगी कहीं श्रद्धा
आलिंगन - विकास विकास फ़िर
विकास की चरम सीमा
कोन किसीका चीर हरेगा
युद्ध शेत्र कहाँ बनेगा
किसके लिए लडेगा धर्मराज
वह शन् -कृष्ण जब
दिखलायेगा विराट रूप
ओर मोह भंग अर्जुन का होगा
इसबार मगर ऐसा कोई द्रश्यनही होगा
क्योंकि -युद्ध
मात्र एक शण का होगा
ओर यह सब एक प्रश्नचिन्ह मे ढल जायेगे
धर्मों के आदर्श कठोर
ओर उनके सुकुमार बदन
एटम की गर्मी से अन्तराल तक जल जायेगे

अल्फ नंगी

न कोई नारा
न हाथ मे परचम
चेहरे पे मसर्रत के नकूश
न क़दमों मे बगावत
साथ उसके न कोई बशर था
न कोई ऐहसासऐ शामो सहर था
बरगद की घनी छाओं मे वह बैठा भी नही
कोई सदा
आहट भी नही कोई
जुल्फों की महक
आँचल की हवा
उसने तेरी आंखों मे देखा भी नही
घनी छाओं मे बैठा भी नही
सैंकड़ों सूरज
लाखों दरिया
समंदर और
कभी न पिघलने वाले बर्फ के घर
दुशवार जंगलों से
कैलाश की चोटियों तक
उसका साया , किसी ने देखा भी नही
वह गंगा के किनारे ठहरा भी नही
उसका साया ?
वह कोई बाद रूह तो नही
नही हरगिज भी नही
कृष्ण की राधा
यशोधरा और सीता
कृष्ण का सुदर्शन
अर्जुन के तीर और गांडीव
सुनसान रास्तों पर
एक कुटिया और
उसमे जलता हुआ दीया
दूर तक तपता हुआ सहरा
एक सरसब्ज दरख्त
और
उसका घना साया
भटके हुए रेवड़
टूटी हुई बंसी
एक बच्चा एक चरवाहा
आसमां पे दौड़ते हुए स्याह बादल
सितारे
ज़मीन और उसकी कशिश
शबनम और सफ़ेद मोती
कहकशां
नाजुक तितलियाँ
फूल और खुशबु
या
सरे मिज़गां ठहरा हुआ आंसू
वर्धमान का तप भी नही
मीरा की भक्ति
शिव की शक्ति भी नही
कुरान
बाइबल
गीता
चुप हैं अजंता की बोलती तस्वीर
शायद यहाँ जिंदगी लिबास बदलती है
मंजिल बहुत करीब है शायद
मय प्यालों मे डाल दो सारी
इधर उधर बिखेर दो शीशे
खुले रहे मयकदों के दरवाजे
मंजिलें बहुत करीब है शायद
हर तरफ धुआं -धुआं
शहर और बस्तियों पर
गिर रही है एटमी धुल
किसी का घर नही महफूज
लोग चाँद पर जा रहे हैं
पत्थर युग का आगाज़ है शायद
समझ नही आता किस तरह याद रखें
हजारों मील लम्बी तहजीब की नज्में
कोन याद रखेगा ?
खैर आओ चलो देखें
कहाँ है वह तहखाना
जहाँ महात्मा बुद्ध का एक अदद बुत
महफूज़ करना है
मंजिलें बहुत करीब हैं शायद
जिंदगी अल्फ नंगी खड़ी है
लगता है लिबास बदल रही है

गमे दुनिया से कभी

दो चार घड़ी
गमे दुनिया से कभी
फुरसत जो मिले
दुनिया मे सुकूँ की बातें
दमकते हुए आरज २
होंठ
होंटों की फुंसुकार३ हँसी
निगाहों के फुंसूकी बातें
दुनिया मे सुकूँ की बातें
कैसी होती है खुशबु
कैसे खिलते हँ कमल
कैसे बहारों का समां आता है
और ज़ज्बा -ऐ -शौक जवाँ होता है
साकी -जाम -ओ - पैमाने४ के किस्से
सागर - ओ - मय - ओ - मयखाना
रक्स -ऑ -झंकार ५ ये नगमे
अफ्लास ६ की दुनिया से परे
नूर7 के सांचे मे ढले
कमखाब - ऑ८ अतलस का लिबास
रेशमी जुल्फें रेशमी आँचल
इसी धरती पर एक और भी धरती है
इन क़दमों का गुजर
नही जिसके सीने पर
उसके सुख कैसे हैं
लोग कैसे रहते हैं
प्यार के गीत क्या हैं
गीतों की लय क्या है
नयनों से मय का छलकना कैसा
गमे दौरां ९ से जरा
बस एक लमहा १०
फुरसत जो मिले ,राहत11 जो मिले
बिरहा की जलन है कैसी
साजन का मिलना है कैसा
इंतजार के पल क्या हैं
कैसे ढलते हैं सरेशाम
शाम के साये
मह्ब्ब्त की तपिश मे जलना
और जलते रहना
इश्क - ऑ जुनूं की बातें
ऐ काश कि हम भी सोचें
दो चार घडी
गमे दुनिया से कभी
राहत जो मिले
फुरसत जो मिले
______________________
1 शान्ति २ गाल ३ जादूभरी ४ मदिरा पिलाने का पात्र ५ नाच ६ निर्धनता ७ रौशनी ८ बहुमूल्य कपडों का नाम 9 दुःख भरा युग १० शंन ११ शान्ति

एक लम्हा

सिर्फ़ एक लम्हा
वक्त की इकाई
इकाई का भी कोई हिस्सा
सिर्फ़ एक लम्हा
अजनबी निगाहें
निगाहों का हादसा
धड़कते जिस्म , जलते होंठ
नीम उरीयाँ १ जिस्म का उभरा हुआ हिस्सा
बेताब सदा २ ______ मैंने सोचा
बेताब सदा को
अल्फाज़ ३ का पैराहन ४ दूँ
वक्त की इकाई
इकाई का कोई भी हिस्सा____कैद कर लूँ
जंजीर पहना दूँ मगर
वक्त के तकाजों ने
ये हकीर ५ लम्हा भी छीन लिया हमसे
सिर्फ़ एक लम्हा

१ अर्धनग्न २ आवाज़ ३ शब्दों का ४ लिबास ५ तुछ

वह पगडण्डी

पूजा करूं मैं किसकी
कोन है मेरा इष्टदेव
किस मन्दिर मे फूल चडाऊँ
कहाँ जलाऊँ जा कर दीप
आँख खुली तो अँधियारा था
बड़े हुए तो आंधी तूफां
फिरे ढुढते जीवन भर
कहीं मिला न हम को भगवा
किस दर पर मै मिट जाऊं
किसे बनाऊ मीत
आँचल किसका थाम के बैठु
किसे करू मे प्रीत
कहीं जली न दीपशिखा वह
जिस पर मे जल जाऊं
बस्ती बस्ती डगर डगर
हम तो घूमे जीवन भर
मिली नही मस्तों की टोली
जिसमे मे मिल जाऊं
कहीं जली न दीपशिखा वह
जिस पर मे जल जाऊँ
कोई नही नदिया के तट पर
मुरझाये मुरझाये चेहरे
फीके फीके आँचल
सूने सूने पनघट पर
किस्से दो बोल कहें
किस से पूछे मन्दिर का रस्ता
कहाँ मिलेगी वह पगडण्डी
गुमसुम है गोरी की झाँझर
`कोई नही जमना के तट पर
सुंदर शाम कहाँ रहते हैं
क्या हर मिलने वाले से मिलते हैं
राधा से रास रचाते होंगे
यमुना तट पर आते होंगे
पर __कोई नही जो
उनसे मिलवा दे मुझको
कहाँ है मेरा इष्ट देव
कहाँ मिलेगी वह पगडण्डी
दो बोल कहे किस से
किस से पूछे राह मन्दिर की

कुछ तो कहो

ऐ बुते संगेमरमर
बेजुबान है तू बे नज़र
न जिस्म मे तेरे लार्जिश१ कोई
न होटों पे कोई जुम्बिश२
न तेरी बाँहों मे कोई बल
तू है सिर्फ़ एक पत्थर
ऐ बुते संगे - मर्मर
तेरी बांसुरी बेसदा है
सुदर्शन तेरा थम गया है
इस दौर के कालिया नाग ने जैसे

तुझे डस लिया हो
सरे महफ़िल नीम उरियाँ है कोई
बिरह की आग मे जल कर
राख हो गई राधा कहीं
मगर तू है बेनयाज़ - ओ बेखबर ५
ऐ बुते- संगे मर्मर
रथों की घर घराहट
तीरों कमान ज़र्रार लश्कर ६
शोरो - गुल
चीखो पुकार
धनुष बांनोकी तन्कारें
जवां मर्दों की ललकारें
देख कर महाभारत का हश्र ७
लगता है तम जंग से घबरा गए
या
किसी दुर्योधन से डर गए
महा नीतीकार
अजीम हस्ती ८
घंटो की सदा
शंखनाद
अगर्बतियों का धुआं
मदन- मोहन- घन शाम
अपने नाम का
गुण गान सुनकर बारहा ९
मैदाने ज़ंग की निस्बत १०
तीरा तफंग११ की निस्बत
लगता है तुम्हें
मरमरी १२ मंदिरों की फजा १३
रास आ गई है कन्हीया
मगर
ये जुल्मो सितम
बेगुनाहों का कत्ल
कोन रोकेगा यह जोरो -जाबर
कुछ तो कहो
ऐ मालिक- ऐ दिनों इमां
क्यों खुदा से बुत बन गए हो
किसी संग तराश १४ के करिश्मा--१५ हुनर
ऐ बुते संगे मर्मर
_____________________________
१ कम्पन २ कम्पन ३ आवाज रहित ४ अर्ध नग्न ५ लापरवाह ६ भारी फौज ७ परिणाम ८ महँ व्यक्तित्व ९ अनेक बार १० अनुपात ११ अस्त्र शास्त्र १२ मुलायम १३ वातावरण १४ मूर्तिकार १५ कौशल का चमत्कार

शहर

सूरज ग्रहण के मेले पर
११ -९-८८
________________
शहर तेरी ज़मीं
अब लहू रंग नही
न कहीं फौज
न ज़ंग न दूर तक फैले हुए जंगल
अब कहीं - ऐसा
कोई बरगद भी नही
जिसके साए तले
फौजों के काफिले ठहरे
जिस के पत्तों की आंखों मे
तैरती हो हाथियों की तसवीरें
ज़ख्म -खुर्दा 1-जवां
दिलखराश २ चीखें
टूटे हुए रथ
गर्द -ओ -गुबार
आग बरसाते हुए बादल
कर्ण और अर्जुन के तीर
दुर्योधन और भीम की शक्लें
हर तरफ घूमता इक सुदर्शन
ये मनाज़र 3 किसने देखे हैं
चश्मदीद ४ गवाह कोई
नही - कोई नही
शहर तेरी ज़मीं -अब लहू रंग नही
हर्षवर्धन के अजी शहर ५
कदीम६ खनढहरों से निकल
बोसीदा७ लिबास बदल
शहर आ
आ मेरे हाथ मे हाथ दे
आ पवित्र तालाब मे
गोताजन हों
आ शहर आ मेरा साथ दे
आ मेरे हाथ मे हाथ दे
_________________________________
१ जख्म खाए हुए २ दिल को चीर देने वाली ३ दृश्य ४ आंखों देखा ५ महाननगर ६ पुराने ७ जीर्ण शीर्ण

तुम खुदा भी हो

और ये शायद
इस कदर ज़रूरी भी नही
हजूर तुम साफ क्यों नही कहते
खुदा कि तुम खुदा भी हो
तेरा नाम लेकर , हर बात हो
दिन खत्म हो
रात कि शुरुआत हो
मगर क्यों नही कहते
तुम मयकाशों1 के साथ रहते हो
कभी सागर कभी मीना कभी साकी
और ये मयखाना भी तेरा है
ऐश्गाहों2 मे तुझे अक्सर
महव-ऐ-रक्स३ देखा है
लोग कहते है____मगर
तुम इन सब से जुदा भी हो
खुदा की तुम खुदा भी हो
जमना के किनारे घूमते हो
बे-नयाज़४ ओ - बे-फिक्र
लगता है गवालों से तेरा
कोई रिश्ता भी है
इन सब के बीच शायद
इक तेरी राधा भी है
आंखों मे बसे सपने की तरह
तुझे अपना समझते हैं वो अपनों की तरह
भंवरे-फूल -कलियाँ - जमना -रेत और माटी
तुम सब मे बसते हो
ज़ल्ज़ले -तूफ़ान -आंधियां मैदाने ज़ंग
गुरु-भाई और बेटे
तीर-शंख-नाद ,और
ज़ंग के सुर्ख बादल भी तेरे हैं
लडो और
तुम ख़ुद भी लड़ते हो
अमल५ को अव्वल६ समझते हो
मिटाते हो कभी
कभी ख़ुद तामीर७ करते हो
मंजिल भी -मुसाफिर भी
तुम रहनुमा८ भी हो
खुदा की तुम खुदा भी हो
बर्ग -ओ -बार
ये शजर१०
नदियाँ -आबशार११
समुन्दर -चाँद और ये ज़मीन
उजड़े हुए मकान
टूटे हुए यकीं१२
मुझ मे-और
मेरे फनकार मे
जब तुम -ख़ुद ही तौ हो मकिन१३
तौ फ़िर - हजूर
साफ क्यों नही कहते
और ये शायद
इस कदर जरूरी भी नही - की
हाथ उठे और दुआ भी हो
खुदा तुम खुदा भी हो
_
___________________

१ शराबियों २ विलास का स्थान ३ नाच मे लीन ४ निर्लिप्त ५ कर्म ६ मुख्य ७ बनाना ८ पथ प्रदर्शक
९ पत्ते और फल १० वृक्ष ११ झरना १२ विश्वास १३ रहना

खयालात भी जल जायेंगे

बहुत गर्म है माहोल
दूर तक ता - हद्दे नज़र
सुर्ख-सुर्ख है ज़मीन का जिस्म
आकाश पर उग रहे हां
हजारों आफ़ताब
बह रहा है आतिश फिषा का लावा सा
जैसे फर्श हो किसी मक्तल का
नर्म - ओ - नाजुक पत्तियां
खेतियां
सब बस्तियां जल गई
शोला -शोला है बरगदों के ताने
पर्वतों पर पत्थर पिघल गए
दूर दूर तक
सुर्ख-सुर्ख है ज़मीन का रंग
इबादतगाहो के निशा
गुरूद्वारे
मस्जिदें
मंदिरों के कलश
ज़मीन के रकबे
अजीम शहर
जो वाएस-ऐ ज़ंग थे
नज़रे ज़ंग हो गए
रास्ते पग डंडियाँ
अज़नास के ज़खीरे
बड़ी बड़ी मंडियां
सुपुर्द -ऐ-आग कर दी गई
रहनुमा भी जले
राहे-रौउ भी जला
बहुत गर्म है माहोल
आसमान पर उग रहे हैं
हजारों आफ़ताब
किस कदर भयानक है
आज के हालात
लगता है खयालात भी जल जायेगे
बहुत गर्म है माहौल

माहौल___वातावरण
मक्तल ___कत्ल करने का स्थान
इबादत गहों __पूजा स्थल
अजीम_____ महान
वाएस-ऐ ____कारण
अज़नास ___अनाज का बहु वचन
ज़खीरे ____भंडार
रहनुमा ___पथ प्रदर्शक
राहे ___ पथिक
आफ़ताब ___सूर्य

कुरुक्षेत्र के मैदान - ऐ - ज़ंग से

मे और
मेरे अन्दर जो इक
शायर है तेरे साथ भाग रहे हैं
dus मील लम्बी दोड ही नही
बल्कि , बहुत
लम्बी दोड
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से
तेरे जलते हुए सहराओं तक
लगातार
शाम- ओ - सहर
इसलिए नही कि
तेरे मकान
तेरे शहर
तेरे वतन के बड़े हिस्से पर
वक्त के खूंखार परिंदे ने
अपने खोफ्नाक पर फैला दिए हैं
इसलिए नही कि
तेरे वतन कि हर राहगुजर पर
आदमी और हड्डियों के ढेर उग आए हैं
और इसलिए भी नही कि
वकतi कि गरम सांसों ने
तेरे माहोल मे आग भर दीहै
बल्कि इसलिए कि
तुमने वकत के खिलाफ
इक द्लेराना आवाज़ दी है
तुम कहीं जबर से हार न जाओ
तेरे मजबूत कदम
कहीं थक न जाएं
मेरे दोस्त _ बस
फकत -इसलिए
मे- और
मेरे अन्दर जो इक शायर है
तेरे साथ- भाग रहे हैं
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से

अफ्रीका के लोगों के नाम, जब उन्होंने वक़्त के खिलाफ दस मील लम्बी दौड़ दौड़ी







दीया

इक दीया हूँ किसी कुटिया मे जलाओ मुझको ।
अच्छा नही लग रहा ॥ सरे बज्म फरोजा रहना ॥
मदन

विरासत

मेरी नसल के प्यारे बच्चों
दुनिया के राजदुलारे बच्चों
माँ की कोख मे पलने वालो
घुटनों के
बल चलने वालो
इस से पहले कि तुम
माँ की बोली जान सको
दुनिया की कोई, भाषा पहचान सको
इस से पहले कि
धरम कोई डस ले तुमको
या
घेरा डाले धरती का कोई बन्धन
रूप की शाह्जादी कोई
आंखों मे भरजाए
आंखों के मस्त प्याले
आँचल की हवा
जुल्फों के घनेरे साए
इस से पहले कि कोई
सात समुन्दर तुम को देने आए
या ऊँचे -ऊँचे आकाशों पर साथ तुम्हें ले जाए
ये भी संभव है मेरे बच्चों
मेरी उमर के सारे लोग
दुनिया का राज तुम्हें दे दें
हुमाके पंखों वाला
ताज तुम्हें दे दें
और नज़र करे
नई सदी का नजराना भी
इस से पहले की तुम
दस्तक दो और
नई सदी का दरवाजा खोलो __बोलो
विरासत के खूनी सालों को
तोपों के धमाकों
बम्बो से भरी सदियाँ
अपाहिज बाजार - ऑ- कूचे
मेरे और मेरी उमरके
नफरत से भरे ख्यालों को
विरासत के खूनी सालों को
बोलो प्यार करोगे ?
अपना लोगे ?
इस से पहले की
धरम कोई डस ले तुम को
या घेरा डाले धरती का कोई बन्धन
बोलो
खूनी सालों को अपना लोगे ?
प्यार करोगे ?

गुफ्तार

फिक्र- ओ फन के मुहजोर परिंदों बोलो
इन्सा मे तौ अब ताक़त- ऐ गुफ्फ्तार नही

भरम

थोड़ा सा भरम प्यार का रहने देना
रिश्ता कोई दरों दीवार का रहने देना
जो तहजीबो तमद्दन का पता दे
बिखरा हुआ मलबा परिवार का रहने देना

साए


साए कहाँ थे राह मे जो बैठते मदन
हम ने किए सफर बहुत सख्तियों के साथ

हकीकतों की मसव्वरी















तेरा काम हकीकतों की मसव्वरी मदन
पकड़ा ना कीजीये ख्यालों की तितलियाँ



बागी था महावीर

तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
तुन्दो तेज़ हवा चलती थी
खून के दरिया बहते थे
कहीं आहों की सदा आती थी
मजहब के आहनी हाथों मे
मौत के सन्नाटों मे
जिंदगी रो रही थी
सिसकियाँ भर रही थी
दूर मन्दिर से घंटों की सदा आती थी
लोग
हरे राम हरे क्रिशन भी कहते होंगे
मगर
कानो मे मेरे आवाज़ नही जा सकती
मेरे होंठ राम नही कह सकते
इस तरह पाबन्द थे जब लोग
मजहब की कैद मे बंद थे जब लोग
दूर चंदन की महक उड़ती थी
हवन यज्य हुआ करते थे
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
हवन कुन्ड्डों मे लोग जला करते थे
नीच थे जो लोग जुदा रहते थे
जिन के पाऊँ मे जंजीरे थे
हाथ मे जंजीर
होठों पे लगे थे ताले
घुट घुट के मरे जाते थे
दादों फरियाद नही थी
नही अश्क रवां हो सकते
कोई ज़ज्बा परवान नही चढ़ सकता
प्यार ओ-मोहब्बत को नही कोई जगह
थी हालात पे वहशत तारी
हर शह से ज़माने की
मजहबी जोश-ओ-जूनून था भारी
हर दिल मे नफरत की आग लगी थी
जंगल भी जला बस्ती भी जली
गंगा का पवित्तर पानी भी जला
राम की पाकीजा धरती भी जली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
दिल किसी मुफलिस का शाद नही था
कुटिया किसी मजदूर की आबाद नहीं थी
दादों फरियाद नहीं थी
मगर,ऐसा भी नहीं था
कि
तेरी याद नही थी
घटा-टॉप अंधेरों का जिगर चाक हुआ
ज़ुल्मत का फुसुं टूट गया
आग जंगल की हो जैसे
यह ख़बर फएल गई
महलों से निकल कर जंगल की तरफ़ आया है कोई
अंधेरों से सहर छीन के लाया है कोई
रौशनी ता हद्ध-ऐ -नज़र फैल गई
इक हवा ऐसी चली
बगावत की हवा हो जैसे
मन्दिर के दरो दीवार हिले
सूरत भी हिली
भगवन की मूरत भी हिली
जद्द कोहना अकीदों की हिली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
रौशनी तहद्दै नज़र फैल गई
आग हवन कुंड्डों मे जलेगी
लेकिन
कोई जिस्म न जलने पाये
हर फूल को खिलने का हक है
हर एक की खातिर, दर मन्दिर का खुले
मन्दिर के दरो दीवार हिले
रौशनी ता हद्दे नज़र फैल गई
हर तरफ़ बगावत थी
मगर खून नही था
हर एक का हक है जीना
हर एक को हक दो
ये बात कही थी किसने
महलों से निकल कर जो जंगल की तरफ़ आया
जो अंधेरों से सहर छीन के लाया
भगवान जिसे कहते है ज़माने वाले
अछूतों का गरीबों का साथी था महावीर
निडर था दिलावर था बागी था महावीर







तू आयेगी कैसे ?

इक रात है अँधेरी
पुर पेच राहों पर
पत्थर हैं कांटें हैं
साए भूत से दरख्तों के .
खडाके खुशक खुशक पत्तों के
हवा के तेज तेज झोंके
आँचल से लिपट के
तेरी राह रोकेंगे
तू आएगी तो आयेगी कैसे ?


सुन सान सड़कों पे
बियाबान सड़कों पे
शहर के आवारा कुत्ते
कुत्तों की सदायें
खौफ जी पे छायेगा
पाँव लड़खडाएगे
तू आएगी, तो आयेगी कैसे ?

यूं तो तेरे और मेरे दरम्यान
इक छोटा सा फासला है
मगर मेरे गिर्दोनावाह
दूर तक , ताहद्दे नज़र
मुफ्लिसो
मजलूम लोगों का जमघट है
गोया हसरतों का पनघट है
उरिया नीम उरियाँ
भूख से फाकाकश,
मासूम बच्चै
मेरे आस पास रहते हैं
मुझे अपना समझते हैं

गुजर कर इन तंगो तारीक़ गलियों से
तू आएगी मेरे ख्यालों की परी
बहुत मुश्किल सा लगता है

मगर फिर भी , ना जाने क्यों
बुझते दीये की , कांपती सी लौ कहती है
तू आएगी
तू जरूर आयेगी ..............