तुम खुदा भी हो

और ये शायद
इस कदर ज़रूरी भी नही
हजूर तुम साफ क्यों नही कहते
खुदा कि तुम खुदा भी हो
तेरा नाम लेकर , हर बात हो
दिन खत्म हो
रात कि शुरुआत हो
मगर क्यों नही कहते
तुम मयकाशों1 के साथ रहते हो
कभी सागर कभी मीना कभी साकी
और ये मयखाना भी तेरा है
ऐश्गाहों2 मे तुझे अक्सर
महव-ऐ-रक्स३ देखा है
लोग कहते है____मगर
तुम इन सब से जुदा भी हो
खुदा की तुम खुदा भी हो
जमना के किनारे घूमते हो
बे-नयाज़४ ओ - बे-फिक्र
लगता है गवालों से तेरा
कोई रिश्ता भी है
इन सब के बीच शायद
इक तेरी राधा भी है
आंखों मे बसे सपने की तरह
तुझे अपना समझते हैं वो अपनों की तरह
भंवरे-फूल -कलियाँ - जमना -रेत और माटी
तुम सब मे बसते हो
ज़ल्ज़ले -तूफ़ान -आंधियां मैदाने ज़ंग
गुरु-भाई और बेटे
तीर-शंख-नाद ,और
ज़ंग के सुर्ख बादल भी तेरे हैं
लडो और
तुम ख़ुद भी लड़ते हो
अमल५ को अव्वल६ समझते हो
मिटाते हो कभी
कभी ख़ुद तामीर७ करते हो
मंजिल भी -मुसाफिर भी
तुम रहनुमा८ भी हो
खुदा की तुम खुदा भी हो
बर्ग -ओ -बार
ये शजर१०
नदियाँ -आबशार११
समुन्दर -चाँद और ये ज़मीन
उजड़े हुए मकान
टूटे हुए यकीं१२
मुझ मे-और
मेरे फनकार मे
जब तुम -ख़ुद ही तौ हो मकिन१३
तौ फ़िर - हजूर
साफ क्यों नही कहते
और ये शायद
इस कदर जरूरी भी नही - की
हाथ उठे और दुआ भी हो
खुदा तुम खुदा भी हो
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१ शराबियों २ विलास का स्थान ३ नाच मे लीन ४ निर्लिप्त ५ कर्म ६ मुख्य ७ बनाना ८ पथ प्रदर्शक
९ पत्ते और फल १० वृक्ष ११ झरना १२ विश्वास १३ रहना