शहर

सूरज ग्रहण के मेले पर
११ -९-८८
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शहर तेरी ज़मीं
अब लहू रंग नही
न कहीं फौज
न ज़ंग न दूर तक फैले हुए जंगल
अब कहीं - ऐसा
कोई बरगद भी नही
जिसके साए तले
फौजों के काफिले ठहरे
जिस के पत्तों की आंखों मे
तैरती हो हाथियों की तसवीरें
ज़ख्म -खुर्दा 1-जवां
दिलखराश २ चीखें
टूटे हुए रथ
गर्द -ओ -गुबार
आग बरसाते हुए बादल
कर्ण और अर्जुन के तीर
दुर्योधन और भीम की शक्लें
हर तरफ घूमता इक सुदर्शन
ये मनाज़र 3 किसने देखे हैं
चश्मदीद ४ गवाह कोई
नही - कोई नही
शहर तेरी ज़मीं -अब लहू रंग नही
हर्षवर्धन के अजी शहर ५
कदीम६ खनढहरों से निकल
बोसीदा७ लिबास बदल
शहर आ
आ मेरे हाथ मे हाथ दे
आ पवित्र तालाब मे
गोताजन हों
आ शहर आ मेरा साथ दे
आ मेरे हाथ मे हाथ दे
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१ जख्म खाए हुए २ दिल को चीर देने वाली ३ दृश्य ४ आंखों देखा ५ महाननगर ६ पुराने ७ जीर्ण शीर्ण