बहुत गर्म है माहोल
दूर तक ता - हद्दे नज़र
सुर्ख-सुर्ख है ज़मीन का जिस्म
आकाश पर उग रहे हां
हजारों आफ़ताब
बह रहा है आतिश फिषा का लावा सा
जैसे फर्श हो किसी मक्तल का
नर्म - ओ - नाजुक पत्तियां
खेतियां
सब बस्तियां जल गई
शोला -शोला है बरगदों के ताने
पर्वतों पर पत्थर पिघल गए
दूर दूर तक
सुर्ख-सुर्ख है ज़मीन का रंग
इबादतगाहो के निशा
गुरूद्वारे
मस्जिदें
मंदिरों के कलश
ज़मीन के रकबे
अजीम शहर
जो वाएस-ऐ ज़ंग थे
नज़रे ज़ंग हो गए
रास्ते पग डंडियाँ
अज़नास के ज़खीरे
बड़ी बड़ी मंडियां
सुपुर्द -ऐ-आग कर दी गई
रहनुमा भी जले
राहे-रौउ भी जला
बहुत गर्म है माहोल
आसमान पर उग रहे हैं
हजारों आफ़ताब
किस कदर भयानक है
आज के हालात
लगता है खयालात भी जल जायेगे
बहुत गर्म है माहौल
माहौल___वातावरण
मक्तल ___कत्ल करने का स्थान
इबादत गहों __पूजा स्थल
अजीम_____ महान
वाएस-ऐ ____कारण
अज़नास ___अनाज का बहु वचन
ज़खीरे ____भंडार
रहनुमा ___पथ प्रदर्शक
राहे ___ पथिक
आफ़ताब ___सूर्य
Likhta hoon tou likhta hoon, dile-e-betaab kee tashqueen' ko ....
कुरुक्षेत्र के मैदान - ऐ - ज़ंग से
मे और
मेरे अन्दर जो इक
शायर है तेरे साथ भाग रहे हैं
dus मील लम्बी दोड ही नही
बल्कि , बहुत
लम्बी दोड
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से
तेरे जलते हुए सहराओं तक
लगातार
शाम- ओ - सहर
इसलिए नही कि
तेरे मकान
तेरे शहर
तेरे वतन के बड़े हिस्से पर
वक्त के खूंखार परिंदे ने
अपने खोफ्नाक पर फैला दिए हैं
इसलिए नही कि
तेरे वतन कि हर राहगुजर पर
आदमी और हड्डियों के ढेर उग आए हैं
और इसलिए भी नही कि
वकतi कि गरम सांसों ने
तेरे माहोल मे आग भर दीहै
बल्कि इसलिए कि
तुमने वकत के खिलाफ
इक द्लेराना आवाज़ दी है
तुम कहीं जबर से हार न जाओ
तेरे मजबूत कदम
कहीं थक न जाएं
मेरे दोस्त _ बस
फकत -इसलिए
मे- और
मेरे अन्दर जो इक शायर है
तेरे साथ- भाग रहे हैं
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से
अफ्रीका के लोगों के नाम, जब उन्होंने वक़्त के खिलाफ दस मील लम्बी दौड़ दौड़ी
मेरे अन्दर जो इक
शायर है तेरे साथ भाग रहे हैं
dus मील लम्बी दोड ही नही
बल्कि , बहुत
लम्बी दोड
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से
तेरे जलते हुए सहराओं तक
लगातार
शाम- ओ - सहर
इसलिए नही कि
तेरे मकान
तेरे शहर
तेरे वतन के बड़े हिस्से पर
वक्त के खूंखार परिंदे ने
अपने खोफ्नाक पर फैला दिए हैं
इसलिए नही कि
तेरे वतन कि हर राहगुजर पर
आदमी और हड्डियों के ढेर उग आए हैं
और इसलिए भी नही कि
वकतi कि गरम सांसों ने
तेरे माहोल मे आग भर दीहै
बल्कि इसलिए कि
तुमने वकत के खिलाफ
इक द्लेराना आवाज़ दी है
तुम कहीं जबर से हार न जाओ
तेरे मजबूत कदम
कहीं थक न जाएं
मेरे दोस्त _ बस
फकत -इसलिए
मे- और
मेरे अन्दर जो इक शायर है
तेरे साथ- भाग रहे हैं
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से
अफ्रीका के लोगों के नाम, जब उन्होंने वक़्त के खिलाफ दस मील लम्बी दौड़ दौड़ी
विरासत
मेरी नसल के प्यारे बच्चों
दुनिया के राजदुलारे बच्चों
माँ की कोख मे पलने वालो
घुटनों के बल चलने वालो
इस से पहले कि तुम
माँ की बोली जान सको
दुनिया की कोई, भाषा पहचान सको
इस से पहले कि
धरम कोई डस ले तुमको
या
घेरा डाले धरती का कोई बन्धन
रूप की शाह्जादी कोई
आंखों मे भरजाए
आंखों के मस्त प्याले
आँचल की हवा
जुल्फों के घनेरे साए
इस से पहले कि कोई
सात समुन्दर तुम को देने आए
या ऊँचे -ऊँचे आकाशों पर साथ तुम्हें ले जाए
ये भी संभव है मेरे बच्चों
मेरी उमर के सारे लोग
दुनिया का राज तुम्हें दे दें
हुमाके पंखों वाला
ताज तुम्हें दे दें
और नज़र करे
नई सदी का नजराना भी
इस से पहले की तुम
दस्तक दो और
नई सदी का दरवाजा खोलो __बोलो
विरासत के खूनी सालों को
तोपों के धमाकों
बम्बो से भरी सदियाँ
अपाहिज बाजार - ऑ- कूचे
मेरे और मेरी उमरके
नफरत से भरे ख्यालों को
विरासत के खूनी सालों को
बोलो प्यार करोगे ?
अपना लोगे ?
इस से पहले की
धरम कोई डस ले तुम को
या घेरा डाले धरती का कोई बन्धन
बोलो
खूनी सालों को अपना लोगे ?
प्यार करोगे ?
दुनिया के राजदुलारे बच्चों
माँ की कोख मे पलने वालो
घुटनों के बल चलने वालो
इस से पहले कि तुम
माँ की बोली जान सको
दुनिया की कोई, भाषा पहचान सको
इस से पहले कि
धरम कोई डस ले तुमको
या
घेरा डाले धरती का कोई बन्धन
रूप की शाह्जादी कोई
आंखों मे भरजाए
आंखों के मस्त प्याले
आँचल की हवा
जुल्फों के घनेरे साए
इस से पहले कि कोई
सात समुन्दर तुम को देने आए
या ऊँचे -ऊँचे आकाशों पर साथ तुम्हें ले जाए
ये भी संभव है मेरे बच्चों
मेरी उमर के सारे लोग
दुनिया का राज तुम्हें दे दें
हुमाके पंखों वाला
ताज तुम्हें दे दें
और नज़र करे
नई सदी का नजराना भी
इस से पहले की तुम
दस्तक दो और
नई सदी का दरवाजा खोलो __बोलो
विरासत के खूनी सालों को
तोपों के धमाकों
बम्बो से भरी सदियाँ
अपाहिज बाजार - ऑ- कूचे
मेरे और मेरी उमरके
नफरत से भरे ख्यालों को
विरासत के खूनी सालों को
बोलो प्यार करोगे ?
अपना लोगे ?
इस से पहले की
धरम कोई डस ले तुम को
या घेरा डाले धरती का कोई बन्धन
बोलो
खूनी सालों को अपना लोगे ?
प्यार करोगे ?
भरम
थोड़ा सा भरम प्यार का रहने देना
रिश्ता कोई दरों दीवार का रहने देना
जो तहजीबो तमद्दन का पता दे
बिखरा हुआ मलबा परिवार का रहने देना
रिश्ता कोई दरों दीवार का रहने देना
जो तहजीबो तमद्दन का पता दे
बिखरा हुआ मलबा परिवार का रहने देना
बागी था महावीर
तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
तुन्दो तेज़ हवा चलती थी
खून के दरिया बहते थे
कहीं आहों की सदा आती थी
मजहब के आहनी हाथों मे
मौत के सन्नाटों मे
जिंदगी रो रही थी
सिसकियाँ भर रही थी
दूर मन्दिर से घंटों की सदा आती थी
लोग
हरे राम हरे क्रिशन भी कहते होंगे
मगर
कानो मे मेरे आवाज़ नही जा सकती
मेरे होंठ राम नही कह सकते
इस तरह पाबन्द थे जब लोग
मजहब की कैद मे बंद थे जब लोग
दूर चंदन की महक उड़ती थी
हवन यज्य हुआ करते थे
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
हवन कुन्ड्डों मे लोग जला करते थे
नीच थे जो लोग जुदा रहते थे
जिन के पाऊँ मे जंजीरे थे
हाथ मे जंजीर
होठों पे लगे थे ताले
घुट घुट के मरे जाते थे
दादों फरियाद नही थी
नही अश्क रवां हो सकते
कोई ज़ज्बा परवान नही चढ़ सकता
प्यार ओ-मोहब्बत को नही कोई जगह
थी हालात पे वहशत तारी
हर शह से ज़माने की
मजहबी जोश-ओ-जूनून था भारी
हर दिल मे नफरत की आग लगी थी
जंगल भी जला बस्ती भी जली
गंगा का पवित्तर पानी भी जला
राम की पाकीजा धरती भी जली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
दिल किसी मुफलिस का शाद नही था
कुटिया किसी मजदूर की आबाद नहीं थी
दादों फरियाद नहीं थी
मगर,ऐसा भी नहीं था
कि
तेरी याद नही थी
घटा-टॉप अंधेरों का जिगर चाक हुआ
ज़ुल्मत का फुसुं टूट गया
आग जंगल की हो जैसे
यह ख़बर फएल गई
महलों से निकल कर जंगल की तरफ़ आया है कोई
अंधेरों से सहर छीन के लाया है कोई
रौशनी ता हद्ध-ऐ -नज़र फैल गई
इक हवा ऐसी चली
बगावत की हवा हो जैसे
मन्दिर के दरो दीवार हिले
सूरत भी हिली
भगवन की मूरत भी हिली
जद्द कोहना अकीदों की हिली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
रौशनी तहद्दै नज़र फैल गई
आग हवन कुंड्डों मे जलेगी
लेकिन
कोई जिस्म न जलने पाये
हर फूल को खिलने का हक है
हर एक की खातिर, दर मन्दिर का खुले
मन्दिर के दरो दीवार हिले
रौशनी ता हद्दे नज़र फैल गई
हर तरफ़ बगावत थी
मगर खून नही था
हर एक का हक है जीना
हर एक को हक दो
ये बात कही थी किसने
महलों से निकल कर जो जंगल की तरफ़ आया
जो अंधेरों से सहर छीन के लाया
भगवान जिसे कहते है ज़माने वाले
अछूतों का गरीबों का साथी था महावीर
निडर था दिलावर था बागी था महावीर
मौत के सन्नाटों मे
तुन्दो तेज़ हवा चलती थी
खून के दरिया बहते थे
कहीं आहों की सदा आती थी
मजहब के आहनी हाथों मे
मौत के सन्नाटों मे
जिंदगी रो रही थी
सिसकियाँ भर रही थी
दूर मन्दिर से घंटों की सदा आती थी
लोग
हरे राम हरे क्रिशन भी कहते होंगे
मगर
कानो मे मेरे आवाज़ नही जा सकती
मेरे होंठ राम नही कह सकते
इस तरह पाबन्द थे जब लोग
मजहब की कैद मे बंद थे जब लोग
दूर चंदन की महक उड़ती थी
हवन यज्य हुआ करते थे
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
हवन कुन्ड्डों मे लोग जला करते थे
नीच थे जो लोग जुदा रहते थे
जिन के पाऊँ मे जंजीरे थे
हाथ मे जंजीर
होठों पे लगे थे ताले
घुट घुट के मरे जाते थे
दादों फरियाद नही थी
नही अश्क रवां हो सकते
कोई ज़ज्बा परवान नही चढ़ सकता
प्यार ओ-मोहब्बत को नही कोई जगह
थी हालात पे वहशत तारी
हर शह से ज़माने की
मजहबी जोश-ओ-जूनून था भारी
हर दिल मे नफरत की आग लगी थी
जंगल भी जला बस्ती भी जली
गंगा का पवित्तर पानी भी जला
राम की पाकीजा धरती भी जली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
दिल किसी मुफलिस का शाद नही था
कुटिया किसी मजदूर की आबाद नहीं थी
दादों फरियाद नहीं थी
मगर,ऐसा भी नहीं था
कि
तेरी याद नही थी
घटा-टॉप अंधेरों का जिगर चाक हुआ
ज़ुल्मत का फुसुं टूट गया
आग जंगल की हो जैसे
यह ख़बर फएल गई
महलों से निकल कर जंगल की तरफ़ आया है कोई
अंधेरों से सहर छीन के लाया है कोई
रौशनी ता हद्ध-ऐ -नज़र फैल गई
इक हवा ऐसी चली
बगावत की हवा हो जैसे
मन्दिर के दरो दीवार हिले
सूरत भी हिली
भगवन की मूरत भी हिली
जद्द कोहना अकीदों की हिली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
रौशनी तहद्दै नज़र फैल गई
आग हवन कुंड्डों मे जलेगी
लेकिन
कोई जिस्म न जलने पाये
हर फूल को खिलने का हक है
हर एक की खातिर, दर मन्दिर का खुले
मन्दिर के दरो दीवार हिले
रौशनी ता हद्दे नज़र फैल गई
हर तरफ़ बगावत थी
मगर खून नही था
हर एक का हक है जीना
हर एक को हक दो
ये बात कही थी किसने
महलों से निकल कर जो जंगल की तरफ़ आया
जो अंधेरों से सहर छीन के लाया
भगवान जिसे कहते है ज़माने वाले
अछूतों का गरीबों का साथी था महावीर
निडर था दिलावर था बागी था महावीर
तू आयेगी कैसे ?
इक रात है अँधेरी
पुर पेच राहों पर
पत्थर हैं कांटें हैं
साए भूत से दरख्तों के .
खडाके खुशक खुशक पत्तों के
हवा के तेज तेज झोंके
आँचल से लिपट के
तेरी राह रोकेंगे
तू आएगी तो आयेगी कैसे ?
सुन सान सड़कों पे
बियाबान सड़कों पे
शहर के आवारा कुत्ते
कुत्तों की सदायें
खौफ जी पे छायेगा
पाँव लड़खडाएगे
तू आएगी, तो आयेगी कैसे ?
यूं तो तेरे और मेरे दरम्यान
इक छोटा सा फासला है
मगर मेरे गिर्दोनावाह
दूर तक , ताहद्दे नज़र
मुफ्लिसो मजलूम लोगों का जमघट है
गोया हसरतों का पनघट है
उरिया नीम उरियाँ
भूख से फाकाकश,
मासूम बच्चै
मेरे आस पास रहते हैं
मुझे अपना समझते हैं
गुजर कर इन तंगो तारीक़ गलियों से
तू आएगी मेरे ख्यालों की परी
बहुत मुश्किल सा लगता है
मगर फिर भी , ना जाने क्यों
बुझते दीये की , कांपती सी लौ कहती है
तू आएगी
तू जरूर आयेगी ..............
पुर पेच राहों पर
पत्थर हैं कांटें हैं
साए भूत से दरख्तों के .
खडाके खुशक खुशक पत्तों के
हवा के तेज तेज झोंके
आँचल से लिपट के
तेरी राह रोकेंगे
तू आएगी तो आयेगी कैसे ?
सुन सान सड़कों पे
बियाबान सड़कों पे
शहर के आवारा कुत्ते
कुत्तों की सदायें
खौफ जी पे छायेगा
पाँव लड़खडाएगे
तू आएगी, तो आयेगी कैसे ?
यूं तो तेरे और मेरे दरम्यान
इक छोटा सा फासला है
मगर मेरे गिर्दोनावाह
दूर तक , ताहद्दे नज़र
मुफ्लिसो मजलूम लोगों का जमघट है
गोया हसरतों का पनघट है
उरिया नीम उरियाँ
भूख से फाकाकश,
मासूम बच्चै
मेरे आस पास रहते हैं
मुझे अपना समझते हैं
गुजर कर इन तंगो तारीक़ गलियों से
तू आएगी मेरे ख्यालों की परी
बहुत मुश्किल सा लगता है
मगर फिर भी , ना जाने क्यों
बुझते दीये की , कांपती सी लौ कहती है
तू आएगी
तू जरूर आयेगी ..............
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