बागी था महावीर

तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
तुन्दो तेज़ हवा चलती थी
खून के दरिया बहते थे
कहीं आहों की सदा आती थी
मजहब के आहनी हाथों मे
मौत के सन्नाटों मे
जिंदगी रो रही थी
सिसकियाँ भर रही थी
दूर मन्दिर से घंटों की सदा आती थी
लोग
हरे राम हरे क्रिशन भी कहते होंगे
मगर
कानो मे मेरे आवाज़ नही जा सकती
मेरे होंठ राम नही कह सकते
इस तरह पाबन्द थे जब लोग
मजहब की कैद मे बंद थे जब लोग
दूर चंदन की महक उड़ती थी
हवन यज्य हुआ करते थे
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
तारीख स्याह रातों मे
मौत के सन्नाटों मे
हवन कुन्ड्डों मे लोग जला करते थे
नीच थे जो लोग जुदा रहते थे
जिन के पाऊँ मे जंजीरे थे
हाथ मे जंजीर
होठों पे लगे थे ताले
घुट घुट के मरे जाते थे
दादों फरियाद नही थी
नही अश्क रवां हो सकते
कोई ज़ज्बा परवान नही चढ़ सकता
प्यार ओ-मोहब्बत को नही कोई जगह
थी हालात पे वहशत तारी
हर शह से ज़माने की
मजहबी जोश-ओ-जूनून था भारी
हर दिल मे नफरत की आग लगी थी
जंगल भी जला बस्ती भी जली
गंगा का पवित्तर पानी भी जला
राम की पाकीजा धरती भी जली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
दिल किसी मुफलिस का शाद नही था
कुटिया किसी मजदूर की आबाद नहीं थी
दादों फरियाद नहीं थी
मगर,ऐसा भी नहीं था
कि
तेरी याद नही थी
घटा-टॉप अंधेरों का जिगर चाक हुआ
ज़ुल्मत का फुसुं टूट गया
आग जंगल की हो जैसे
यह ख़बर फएल गई
महलों से निकल कर जंगल की तरफ़ आया है कोई
अंधेरों से सहर छीन के लाया है कोई
रौशनी ता हद्ध-ऐ -नज़र फैल गई
इक हवा ऐसी चली
बगावत की हवा हो जैसे
मन्दिर के दरो दीवार हिले
सूरत भी हिली
भगवन की मूरत भी हिली
जद्द कोहना अकीदों की हिली
बीते हुए युग की बातें
याद करूं जी डरता है
रौशनी तहद्दै नज़र फैल गई
आग हवन कुंड्डों मे जलेगी
लेकिन
कोई जिस्म न जलने पाये
हर फूल को खिलने का हक है
हर एक की खातिर, दर मन्दिर का खुले
मन्दिर के दरो दीवार हिले
रौशनी ता हद्दे नज़र फैल गई
हर तरफ़ बगावत थी
मगर खून नही था
हर एक का हक है जीना
हर एक को हक दो
ये बात कही थी किसने
महलों से निकल कर जो जंगल की तरफ़ आया
जो अंधेरों से सहर छीन के लाया
भगवान जिसे कहते है ज़माने वाले
अछूतों का गरीबों का साथी था महावीर
निडर था दिलावर था बागी था महावीर