तुम और मैं
यानि कि हम दोनों
कितने कमज़ोर
कितने बेबस
मजबूर भी हैं शायद
लेकिन
मायूस ओ अकेले तो नही
एक अजमे सफर तो है
दूर स्याह रातों के किनारों पर
रक्सां सहर तो है
हम उसके लिए चलते हैं
गुजरगाहों के सुर्ख पड़ावों से
ऐसा भी नही कि
हम बच के निकल जायें
ये किसने किया है -ये किसका लहू है
ये जाने बिना यारो
हर लाश के हमराह शब् भर
हम
चिरागों कि तरह जलते हैं
एक अजमे सफर है
दूर स्याह रातों के किनारों पर
वह जो एक
रक्सां सहर है
हम -
यानि कि हम दोनों
में और तुम
उसके लिए चलते हैं
चिरागों कि तरह जलते हैं
Likhta hoon tou likhta hoon, dile-e-betaab kee tashqueen' ko ....
उस पार
उस पार
कहाँ रहते हो तुम
कितने मोड़ आएगे
तेरे घर तक आते आते
सरे रह खड़े
खामोश दरख्तों से
मैं -
तेरा पता पूछूँ
कि न पूछूँ
कोई बोलेगा कि नही बोलेगा
उस पार
यहाँ तुम रहते हो
लोग प्यार को क्या कहते हैं
पहली मुलाकात के बाद
फ़िर - कभी यूँ ही
कोई मिलता है कि नही मिलता
प्यार से डरते तो नही लोग
बोलो
उस पार
मैं - आऊं कभी
कि न आऊं
उस पार
यहाँ तुम रहते हो
लोग प्यार को क्या कहते हैं
कहाँ रहते हो तुम
कितने मोड़ आएगे
तेरे घर तक आते आते
सरे रह खड़े
खामोश दरख्तों से
मैं -
तेरा पता पूछूँ
कि न पूछूँ
कोई बोलेगा कि नही बोलेगा
उस पार
यहाँ तुम रहते हो
लोग प्यार को क्या कहते हैं
पहली मुलाकात के बाद
फ़िर - कभी यूँ ही
कोई मिलता है कि नही मिलता
प्यार से डरते तो नही लोग
बोलो
उस पार
मैं - आऊं कभी
कि न आऊं
उस पार
यहाँ तुम रहते हो
लोग प्यार को क्या कहते हैं
बोल कवि
उड़ कर तेरी सोच के पंछी
बोल कवि
अब और कहाँ जायेगे
तरनी तट तरुवर सूखे
घर आँगन
टूट गए दीवारों दर के रिश्ते
जंगल जंगल बस्ती बस्ती
सुबह सवेरे
मुह अंधेरे
घूम गया कोई जैसे
वैर विरोध का घोड़ा लेकर
वह नेजें तलवारें बाँट गया
गावों और शहरों की
दीवारें बाँट गया
छत्तों और मुंडेरों पर
धर्मों के नाम लिख लिए लोगों ने
किस छत पर उतेरेंगे
किस जात का दाना खायेगे
उड़ कर तेरी सोच के पंछी
बोल कवि
अब और कहाँ जायेगे
धरती धरती आग जले
अम्बर अम्बर धुआं
बोल कवि
अब और कहाँ जायेगे
तरनी तट तरुवर सूखे
घर आँगन
टूट गए दीवारों दर के रिश्ते
जंगल जंगल बस्ती बस्ती
सुबह सवेरे
मुह अंधेरे
घूम गया कोई जैसे
वैर विरोध का घोड़ा लेकर
वह नेजें तलवारें बाँट गया
गावों और शहरों की
दीवारें बाँट गया
छत्तों और मुंडेरों पर
धर्मों के नाम लिख लिए लोगों ने
किस छत पर उतेरेंगे
किस जात का दाना खायेगे
उड़ कर तेरी सोच के पंछी
बोल कवि
अब और कहाँ जायेगे
धरती धरती आग जले
अम्बर अम्बर धुआं
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