वह पगडण्डी

पूजा करूं मैं किसकी
कोन है मेरा इष्टदेव
किस मन्दिर मे फूल चडाऊँ
कहाँ जलाऊँ जा कर दीप
आँख खुली तो अँधियारा था
बड़े हुए तो आंधी तूफां
फिरे ढुढते जीवन भर
कहीं मिला न हम को भगवा
किस दर पर मै मिट जाऊं
किसे बनाऊ मीत
आँचल किसका थाम के बैठु
किसे करू मे प्रीत
कहीं जली न दीपशिखा वह
जिस पर मे जल जाऊं
बस्ती बस्ती डगर डगर
हम तो घूमे जीवन भर
मिली नही मस्तों की टोली
जिसमे मे मिल जाऊं
कहीं जली न दीपशिखा वह
जिस पर मे जल जाऊँ
कोई नही नदिया के तट पर
मुरझाये मुरझाये चेहरे
फीके फीके आँचल
सूने सूने पनघट पर
किस्से दो बोल कहें
किस से पूछे मन्दिर का रस्ता
कहाँ मिलेगी वह पगडण्डी
गुमसुम है गोरी की झाँझर
`कोई नही जमना के तट पर
सुंदर शाम कहाँ रहते हैं
क्या हर मिलने वाले से मिलते हैं
राधा से रास रचाते होंगे
यमुना तट पर आते होंगे
पर __कोई नही जो
उनसे मिलवा दे मुझको
कहाँ है मेरा इष्ट देव
कहाँ मिलेगी वह पगडण्डी
दो बोल कहे किस से
किस से पूछे राह मन्दिर की