अल्फ नंगी

न कोई नारा
न हाथ मे परचम
चेहरे पे मसर्रत के नकूश
न क़दमों मे बगावत
साथ उसके न कोई बशर था
न कोई ऐहसासऐ शामो सहर था
बरगद की घनी छाओं मे वह बैठा भी नही
कोई सदा
आहट भी नही कोई
जुल्फों की महक
आँचल की हवा
उसने तेरी आंखों मे देखा भी नही
घनी छाओं मे बैठा भी नही
सैंकड़ों सूरज
लाखों दरिया
समंदर और
कभी न पिघलने वाले बर्फ के घर
दुशवार जंगलों से
कैलाश की चोटियों तक
उसका साया , किसी ने देखा भी नही
वह गंगा के किनारे ठहरा भी नही
उसका साया ?
वह कोई बाद रूह तो नही
नही हरगिज भी नही
कृष्ण की राधा
यशोधरा और सीता
कृष्ण का सुदर्शन
अर्जुन के तीर और गांडीव
सुनसान रास्तों पर
एक कुटिया और
उसमे जलता हुआ दीया
दूर तक तपता हुआ सहरा
एक सरसब्ज दरख्त
और
उसका घना साया
भटके हुए रेवड़
टूटी हुई बंसी
एक बच्चा एक चरवाहा
आसमां पे दौड़ते हुए स्याह बादल
सितारे
ज़मीन और उसकी कशिश
शबनम और सफ़ेद मोती
कहकशां
नाजुक तितलियाँ
फूल और खुशबु
या
सरे मिज़गां ठहरा हुआ आंसू
वर्धमान का तप भी नही
मीरा की भक्ति
शिव की शक्ति भी नही
कुरान
बाइबल
गीता
चुप हैं अजंता की बोलती तस्वीर
शायद यहाँ जिंदगी लिबास बदलती है
मंजिल बहुत करीब है शायद
मय प्यालों मे डाल दो सारी
इधर उधर बिखेर दो शीशे
खुले रहे मयकदों के दरवाजे
मंजिलें बहुत करीब है शायद
हर तरफ धुआं -धुआं
शहर और बस्तियों पर
गिर रही है एटमी धुल
किसी का घर नही महफूज
लोग चाँद पर जा रहे हैं
पत्थर युग का आगाज़ है शायद
समझ नही आता किस तरह याद रखें
हजारों मील लम्बी तहजीब की नज्में
कोन याद रखेगा ?
खैर आओ चलो देखें
कहाँ है वह तहखाना
जहाँ महात्मा बुद्ध का एक अदद बुत
महफूज़ करना है
मंजिलें बहुत करीब हैं शायद
जिंदगी अल्फ नंगी खड़ी है
लगता है लिबास बदल रही है