जंग की बारिश

आसमानो से फ़रिश्ते
ज़मीनों पर कभी नहीं आते
आदमी ख़ुद बनाता है
कही मंदिर
कही मस्जिद
और--फिर
उन में सज़ा देता है -ख़ुद-
धर्म के दहकते अंगारे
आग के फूल
जाबजा खिलखिलाते है
लोग
अनदेखे फ़रिश्तों के
गीत गुनगुनाते है
ज़हर के कितने बादल है
दरख़्तों  के सिरों पर
दोस्तों - अपने घरों पर
छमाछम बारिश बरसती है
और - भीगता रहता है
कभी मस्जिद का मन
कभी मंदिर का मन
ईद के हमजोली कभी
रंग भरी होली कभी
हम मसतो की टोली कभी
दुल्हन कभी  -- डोली कभी
ये बारिश  -- जंग की बारिश
फ़रिश्ते आसमानों से नहीं लाते
ज़मीनों पर फ़रिश्ते कभी नहीं आते
मगर -- फिर भी  -- छमाछम
 बारिश बरसती है
और भीगता रहता है आदमी