कुरुक्षेत्र के मैदान - ऐ - ज़ंग से

मे और
मेरे अन्दर जो इक
शायर है तेरे साथ भाग रहे हैं
dus मील लम्बी दोड ही नही
बल्कि , बहुत
लम्बी दोड
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से
तेरे जलते हुए सहराओं तक
लगातार
शाम- ओ - सहर
इसलिए नही कि
तेरे मकान
तेरे शहर
तेरे वतन के बड़े हिस्से पर
वक्त के खूंखार परिंदे ने
अपने खोफ्नाक पर फैला दिए हैं
इसलिए नही कि
तेरे वतन कि हर राहगुजर पर
आदमी और हड्डियों के ढेर उग आए हैं
और इसलिए भी नही कि
वकतi कि गरम सांसों ने
तेरे माहोल मे आग भर दीहै
बल्कि इसलिए कि
तुमने वकत के खिलाफ
इक द्लेराना आवाज़ दी है
तुम कहीं जबर से हार न जाओ
तेरे मजबूत कदम
कहीं थक न जाएं
मेरे दोस्त _ बस
फकत -इसलिए
मे- और
मेरे अन्दर जो इक शायर है
तेरे साथ- भाग रहे हैं
कुरुक्षेत्र के मैदाने ज़ंग से

अफ्रीका के लोगों के नाम, जब उन्होंने वक़्त के खिलाफ दस मील लम्बी दौड़ दौड़ी